क्यूँ है ये शोर और हल्ला,
क्यूँ मची है ये धमा चौकड़ी ?
उन्माद की चादर में क्यूँ सिमट रहा है, ये देश सारा!!
होली नहीं है फिर भी क्यूँ रंगे दिख रहे है चेहरे सारे .........
पतझड़ के मौसम में , पेड़ भी क्यूँ लेह लाहा रहे ?
पटाखों की लड़ी चल रही , रोकेट दिख रहे आसमानों में,
ढोल नगाड़े जमके बज रहे, मिठाई बँट रही है क्यूँ ?
हर्षित मुख और तरंगित स्वर, गा रहे क्यूँ जन गन मन !!!
ना कोई लीडर आया यहाँ पर ना कोई त्यौहार !!!
उत्सव का माहोल है बना, हर विचिलित मन है उल्लास .
कटुता नहीं क्यूँ वाणी में, क्यूँ नहीं दिखती गालियाँ !
क्यूँ सब है गले मिल रहे , बाँट रहे हैं बधाइयाँ ?
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